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बुधवार, 6 जनवरी 2016

अविराम विस्तारित

अविराम  ब्लॉग संकलन :  वर्ष  : 5,   अंक  : 01-04, सितम्बर-दिसम्बर  2015



।।क्षणिका।।

सामग्री :  इस अंक में डॉ. बेचैन कण्डियाल की क्षणिकाएँ।


डॉ. बेचैन कण्डियाल




{प्रेम और पीड़ा की अनुभूतियों के कवि डॉ. बेचैन कण्डियाल जी क्षणिका एवं क्षणिका सदृश रचनाओं के सृजन में विशेष रुचि लेते रहे हैं। उनकी क्षणिकाओं का संग्रह ‘टूटे हुए तार’ जून 2011 में प्रकाशित हुआ था। तब यह उनकी पहली प्रकाशित कृति भी थी। प्रस्तुत हैं उनके इसी संगह से कुछ प्रतिनिधि क्षणिकाएँ।}

कुछ क्षणिकाएँ
01. एक दिन में
मैं एक दिन में
कई बार चढ़ जाता हूँ

ताँवाखाड़ी की
चोटी पर,
और कई बार
गिर जाता हूँ
कान्टीनेन्टल की खाई में।
02. ख्याल आया
वादे-
तोड़ने के लिये ही
किये जाते हैं बेचैन,
जब-
तुम न आये तो
यह ख्याल आया।
03. ज्यादा दिन
यह 
अदा ही सही
गुस्सा न हो तेरा,
छायाचित्र : आकाश अग्रवाल
खुदा खैर करे
यह 
ज्यादा दिन न चले।
04. एहसास
भरने नहीं दिया
तब से
अपने जख्मों को मैंने,
भूल का एहसास
कर लेता हूँ
जब-जब दर्द होता है।
05. अकेला
दर्द 
किसका नहीं होता
सबको मिलता है,
कुछ-
लोग बाँट लेते हैं
कुछ अकेले
पचा लेते हैं।
06. पत्ता पतझड़ का
चैन न मिल पाया यहाँ
तो कल
वहाँ चला जाऊँगा,
एक पत्ता हूँ पतझड़ का,
चला जाऊँगा-
जहाँ हवा ले उड़े।
07. टूट जाता है
बहुत से
तागे पिरोकर
देख लिये,
ये दिल है
कि बार-बार
टूट जाता है।
08. आँख मिचौनी
पहले जमाने ने
फिर-
जिन्दगी ने मारा मुझको,
अब-
मौत है कि
आँख-मिचौनी खेलती है।
09. रात हो गई
रोज कहते थे
कि चले जाना
सांझ ढलने के बाद,

आज सांझ ढली भी नहीं
छायाचित्र : उमेश महादोषी

कहते हैं-
रात बहुत हो गई।
10. भरोसा है
अँधेरों का भरोसा है
कि ये
साथ रहेंगे उम्र भर,
उजालों का क्या है
कब
साँझ ढल जाये।

  • ‘आश्ना’, सी ब्लॉक, लेन नं.4, सरस्वती विहार, अजबपुर खुर्द, देहरादून (उ.खण्ड) / मोबा. 09411532432

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